31 साल की ऊर्जा अपने पति निकुंज के साथ मुंबई में रहती हैं। उनके परिवार में कभी किसी को कैंसर नहीं हुआ। इस बारे में कभी सोचा भी नहीं था कि इतनी बड़ी बीमारी उन्हें भी हो सकती है।
लॉकडाउन का वक्त उन पर कुछ इस तरह से भारी हुआ, जिसका अंदाजा खुद उन्हें भी नहीं था। ऊर्जा ने 30 मार्च से अपना कैंसर ट्रीटमेंट शुरू किया था। उन्हें 14 अगस्त के दिन डॉक्टर ने कैंसर फ्री बताया। ऊर्जा ने कैंसर से किस तरह जंग जीती और किन तकलीफों का सामना किया, वे अपनी आपबीती को शब्दों के माध्यम से कुछ इस तरह बयां कर रही हैं:
मैं वह वक्त नहीं भूल सकती, जब कैंसर की शुरुआत हुई थी। मुझे खाना निगलने और चबाने में तकलीफ हो रही थी। इसलिए मैंने मुंबई में गेस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट वेदांत कारवीर को दिखाया। उन्होंने मुझे एंडोस्कोपी कराने की सलाह दी। एंडोस्कोपी करने के दौरान उसकी नली मेरे गले में नहीं जा रही थी। तभी मुझे ये बताया गया कि मेरे गले में गांठ है।
तब डॉक्टर ने मुझे सीटी स्कैन और खून की जांच कराने की सलाह दी। उन्हीं रिपोर्ट के आधार पर मुझे तत्काल परेल स्थित ग्लोबल हॉस्पिटल जाने के लिए कहा। यहां जांच से पता चला कि गले में 90% ब्लॉकेज है। उस वक्त मेरी हालत इतनी खराब थी कि मैं मुंह से खाना और पानी दोनों नहीं ले पा रही थी। इसलिए मेरी नाक में नली लगाई गई ताकि मुझे जरूरी पोषण इस नली के जरिये दिया जा सके।
फिर पांच दिन बाद मेरी बायोप्सी की रिपोर्ट आई जिससे ये पता चला कि मुझे इसोफेगस का कैंसर है। मैं कैंसर की तीसरी स्टेज पर पहुंच चुकी थी। जब मुझे इस बीमारी के बारे में पता चला तो मुझे ये लगा कि मेरी जिंदगी खत्म हो गई है। मुझे इस बात का भी आश्चर्य था कि मुझसे पहले मेरे परिवार में कभी किसी को कैंसर नहीं हुआ।
डॉ. रोहित मालदे ने मेरे ठीक होने के 50% चांस बताए। उन्होंने मुझे 35 रेडिएशन और 6 कीमोथैरेपी कराने के लिए कहा। कीमोथैरेपी की वजह से मेरे बाल झड़ गए और रेडिएशन के कारण मेरे गले की स्किन अंदर तक डैमेज हो गई। उसकी वजह से 29 रेडिएशन के बाद ही मेरा ट्रीटमेंट रुकवा दिया गया। ऐसे हालात में मेरा वजन कम होना भी मेरे लिए मुसीबत बना।
मैंने कभी इस बीमारी के बारे में नहीं सुना और न ही मुझे ये पता था कि मेरा इलाज भी हो सकता है। मुझे मेरी जिंदगी में चारों ओर अंधेरा नजर आ रहा था। तब मैंने अपने पति निकुंज के साथ मेरे अंकल जो डॉक्टर भी हैं, अशोक लोहाणा से बात की। उन्होंने हमें नानावटी हॉस्पिटल, मुंबई में डॉ. रोहित मालदे से मिलने की सलाह दी।
जब मैंने अपना ट्रीटमेंट शुरू किया था, तब मेरा वजन 36 किलो था। डॉक्टर्स ने मुझे साफ तौर पर यह बता दिया था कि अगर अब एक किलो भी वजन कम हुआ तो मेरा इलाज नहीं हो पाएगा। तब मैंने नानावटी हॉस्पिटल की चीफ डाइटीशियन डॉ. उषा किरण सिसोदिया की मदद ली। उनके बताए डाइट चार्ट को फॉलो कर पांच महीने में मेरा वजन 46 किलो हो गया।
लॉकडाउन की वजह से मेरे लिए हफ्ते में 5 दिन अस्पताल जाकर ट्रीटमेंट लेना भी मुश्किल रहा। इंफेक्शन के डर से मेरे फूड पाइप को लेकर हमें अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ी क्योंकि ये डर हमेशा लगा रहता था कि कोरोना महामारी का असर कहीं इस बीमारी की वजह से मुझे या हर वक्त साथ रहने वाले मेरे पति निकुंज को न हो जाए।
जब मेरा इलाज शुरू हुआ था तो मुझे ये लग रहा था कि मैं कैंसर से जंग हार जाऊंगी लेकिन जब मुझे अपनी बॉडी से पॉजिटिव सिग्नल मिलने लगे तो इस बात का अहसास होने लगा कि इस बीमारी को मैं हराकर ही रहूंगी।
नानावटी हॉस्पिटल के डॉक्टर रोहित मालदे और भारत चौहाण ने मेरी भरपूर सहायता की। इस ट्रीटमेंट के दौरान मैंने अपनी आवाज खो दी थी। ऐसे में मेरे माता-पिता, मेरे दोस्त और अस्पताल के स्टाफ ने मेरी मदद की। ऐसे मुश्किल वक्त में मुझे उन लोगों से हौसला मिला जो वीडियो कॉल करके मेरी हिम्मत बढ़ाते थे और मैं अपनी तकलीफ उन्हें सिर्फ साइन लैंग्वेज में समझा पाती थी।
जो लोग इस वक्त कैंसर पेशेंट हैं और अपना इलाज करा रहे हैं, मैं उनसे कहना चाहती हूं कि अपने डॉक्टर पर पूरा भरोसा रखें। इस बीमारी को जानने के लिए पूरी तरह गूगल पर भरोसा न करें क्योंकि कैंसर के हर पेशेंट का हर स्टेज में इलाज अलग होता है। इंटरनेट पर शत प्रतिशत विश्वास करना ठीक नहीं है। इस बीमारी से जुड़ी हर छोटी बात को भी डॉक्टर से पूछें, क्योंकि वही हैं जो आपको सही सलाह और ट्रीटमेंट दोनों दे सकते हैं।
आखिर मैं यही कहूंगी कि हालात चाहे कितने ही मुश्किल क्यों न हों, कभी खुद को कम मत समझो। सबसे पहले अपनी सेहत का ध्यान रखिए।
आपका शरीर जो भी सिग्नल आपको दे रहा है, उसे नजरअंदाज मत करिए क्योंकि समय रहते अगर आपको अपनी बीमारी के बारे में पता चलेगा तो ही आप सही समय पर उसका इलाज करवा सकेंगे।
Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
from Dainik Bhaskar
https://ift.tt/33ldcq4
إرسال تعليق