हर चार भारतीयों में से एक भारतीय तम्बाकू का उपयोग करता है। इसकी देश भर में आदत ज्यादा है। सच तो यह है कि सरकार भी इस पर काफी हद तक निर्भर है। लोगों तक तम्बाकू और सिगरेट पहुंचाने वाली प्रमुख कम्पनी आईटीसी है। दरअसल इसमें ब्रिटिश अमेरिकन टोबैको (बैट) का विवाद ऐसा है कि यह आगे एक खतरा बन सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि बैट की आईटीसी में अच्छी खासी हिस्सेदारी है।
आईटीसी का ऐसे बदला नाम
आईटीसी को पहले इंपीरियल टोबैको ऑफ इंडिया के नाम से जाना जाता था। बाद में इसे इंडिया टोबैको कंपनी का नाम दिया गया। अंत में सिर्फ आईटीसी रखा गया। 110 साल पुरानी इस कंपनी में 29.4 पर्सेंट का मालिक ब्रिटिश अमेरिकी तंबाकू पीएलसी है।
28.5 पर्सेंट हिस्सेदारी बीमा कंपनियों और बैंकों के पास है
आईटीसी में 28.5% हिस्सेदारी विभिन्न बीमा कंपनियों और सरकारी बैंकों के पास है। जबकि बाकी मालिकाना हक कई किस्म के वैल्यू ट्रैप में उलझा हुआ है। यह मामला 25 अरब डॉलर वाली इस कंपनी को एक शुद्ध सिगरेट कंपनी में तब्दील होने से रोक रहा है, जिसका स्वामित्व बैट के पास है। बैट एक तरह का सप्लाई चेन प्लेटफॉर्म है। इसका एंटरप्राइज वैल्यू चार गुना ज्यादा है। यह सिर्फ आईटीसी के माइनॉरिटी शेयरधारकों के लिए ही नहीं, बल्कि भारत के लिए एक गंवा देने वाला अवसर है।
आईटीसी के लिए है मौका
अब जब देश में किसानों को राज्यों के बाहर के बाजार में अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता मिल रही है, आईटीसी जैसे कॉर्पोरेट खरीदार के पास सबसे छोटे कस्बों (सिगरेट के कारण) में वितरण क्षमताएं हैं। इसके पास एक बेहतर डिजिटल और कृषि आधारित व्यापार स्थापित करने का एक बेहतरीन मौका है। यह उत्पादकों को एक बेहतर कीमत देने में सक्षम है।
लंदन की बैट कंपनी ने कब्जे में लेने की कोशिश की
जहां तक मुख्य तंबाकू कारोबार की बात है, लंदन स्थित बैट ने पहले अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने और सिगरेट निर्माता को अपने कब्जे में लेने की कोशिश की है। लेकिन स्थानीय प्रबंधकों ने इसे भारतीय वित्तीय संस्थानों की वोटिंग राइट्स का उपयोग करते हुए मना कर दिया है। हालांकि, कई निवेशक अब सोच रहे हैं कि क्या आईटीसी के प्रबंधन द्वारा एंपायर बिल्डिंग का कदम राष्ट्रीय हितों की रक्षा की आड़ में बहुत दूर चला गया है।
आर्थिक तंगी से जूझ रही सरकार विचार कर सकती है
आर्थिक तंगी से जूझ रही सरकार, जो कोरोना से प्रभावित अर्थव्यवस्था को राहत देने के लिए देरी कर रही है, अपने रुख पर फिर से विचार करने की जरूरत महसूस कर रही है। अगर भारी नियंत्रण प्रीमियम का पेमेंट कर बैट आईटीसी के डिवीज़न का प्लान सफल कर लेता है तो इसका क्या अतिरिक्त नुकसान होगा? इसके बदले में यह हो सकता है कि भारत नए मालिक से राजस्व हथियाने के लिए एक समय पर कमिटमेंट करा सकता है।
एक अध्ययन में कहा गया है कि कम रिस्क वाले उत्पाद बनाने वाली कंपनियां ज्यादातर उच्च आय वाले देशों पर केंद्रित कर रही हैं, जहां धूम्रपान की दरें कम हैं। सिगरेट की बिक्री पहले से ही घट रही है।
दो शेयर धारकों के बीच है लड़ाई
दो बड़े शेयरधारकों के बीच लड़ाई कुछ मालिकों को नुकसान पहुंचा रही है। यह गतिरोध बहुत लंबे समय से चला आ रहा है। 25 साल पहले इस बात को लेकर लड़ाई खत्म हो चुकी है कि क्या आईटीसी को बिजली प्रोजेक्ट की स्थापना की जानी चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि भारतीय सिगरेट निर्माता कैश रिच कंपनी है और दूसरी ओर बिजली की कमी काफी है।
बैट की योजना को ध्वस्त करने के लिए सरकारी मदद
1996 में नए अध्यक्ष योगेश "योगी" देवेश्वर ने भारत में 555, स्टेट एक्सप्रेस और बेंसन एंड हेजेज सिगरेट जैसे अंतरराष्ट्रीय ब्रांडों को बेचने के लिए एक अलग यूनिट के लिए बैट की योजना को ध्वस्त करने के लिए सरकार की मदद ली थी। तब से स्थानीय व्यापार ने तेजी से अपनी दिशा खुद तय की। अब बैट भी पूरे आईटीसी के लिए एक बोली लगाने का दबाव नहीं डाल सकता है। क्योंकि तंबाकू को 2010 के बाद से विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए असीमित कर दिया गया है। वह भी आईटीसी को भारतीय हाथों में रखने के लिए किया गया था।
सिगरेट से अच्छी कमाई
आईटीसी ने पिछले साल टैक्स के साथ 2.8 अरब डॉलर का फायदा कमाया था। यह सिगरेट बिजनेस से आया था। हालांकि कंपनी ने इस दौरान होटल, स्नैक्स और पेपर में निवेश भी किया। डिविडेंड भुगतान का अनुपात बढ़कर पिछले वर्ष 81% पर जा पहुंचा। यह पिछले 18 वर्षों के औसत का आधा ही था जो बैट के वितरण से लगभग 20% कम है।
बायबैक के जरिए बैट बढ़ा रहा है हिस्सेदारी
बैट ने पिछले छह वर्षों में बायबैक के माध्यम से अपने स्वयं के शेयरधारकों को 2.1 बिलियन डॉलर लौटाए हैं। आईटीसी निवेशकों के लिए ऐसी कोई किस्मत नहीं है। उन्हें बायबैक की पेशकश इसलिए नहीं की जा सकती है क्योंकि इसके जरिए बैट अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकता है। बैट इसलिए बायबैक करते आ रहा है ताकि उसकी हिस्सेदारी बढ़ती जाए।
आईटीसी के शेयर में नहीं मिला है रिटर्न
पिछले 10 वर्षों में आईटीसी के शेयरों ने अपने डॉलर के मूल्य का 11% वैल्यू खो दिया है। जबकि नेस्ले इंडिया लिमिटेड में इसी अवधि में एक रुपए का निवेश तीन रुपए हो गया है। विश्लेषकों के मुताबिक आईटीसी का एग्री-बिज़नेस ग्राहकों के साथ रिटेलर्स को जोड़ने वाले डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के निर्माण का मौका देता है। यह ठीक वैसे ही है जैसे चीनी कंपनियों ने सफलतापूर्वक किया है।
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