लक्ष्मी विलास ही नहीं, यस बैंक, पीएमसी समेत कई बैंकों को सरकार ने बचाया

लक्ष्मी विलास बैंक की विफलता ने एक बार फिर देश की बैंकिंग इंडस्ट्री को चर्चा में ला दिया है। हालांकि समय रहते इसे बचा लिया गया है। आरबीआई के त्वरित फैसले ने बैंकों के ग्राहकों की चिंता को तुरंत खत्म कर दिया। लेकिन यह केवल कमर्शियल बैंकों के साथ ही हो पाता है। जबकि सहकारी बैंक फेल हो गए तो उन्हें या तो बंद कर दिया जाएगा या उनके हाल पर छोड़ दिया जाएगा।

कमर्शियल बैंक डूबने से बचते रहेंगे

भारतीय बैंकिंग इंडस्ट्री में कभी भी कमर्शियल बैंकों को डूबने से बचा लिया जाता है। चाहे वह यस बैंक रहा हो, आईडीबीआई बैंक रहा हो, पंजाब नेशनल बैंक हो। लक्ष्मी विलास बैंक में घटना सामने आने के महज कुछ ही मिनट में भारतीय रिजर्व बैंक ने इसे DBS में मिलाने की योजना का ऐलान कर दिया और साथ ही ग्राहकों के पैसे को सुरक्षित कर दिया। वैसा उसने पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव (PMC) या किसी और को-ऑपरेटिव बैंक में नहीं किया।

मार्च में यस बैंक को बचाया, PMC को छोड़ दिया

इसी साल मार्च में यस बैंक को आरबीआई ने अपने कब्जे में लिया और इसे एसबीआई को दे दिया। एसबीआई ने इसमें 49% की हिस्सेदारी लेकर इसे फिर से सही कर दिया। जहां तक PMC की बात है तो इसमें अभी भी निकासी की सीमा लगी हुई है। हालांकि इसके भी मिलाने की बात चल रही है, लेकिन एक साल बीतने को आ गए, योजना पूरी नहीं हुई।

IDBI को भी बचाया गया

सरकारी बैंक IDBI की स्थिति भी कुछ इसी तरह की थी। हालांकि उसमें कोई घटना सामने आए, उससे पहले ही उसे भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के हाथ में दे दिया गया। आज IDBI बैंक में मेजोरिटी हिस्सेदारी LIC की है और सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचकर निकलना चाहती है।

गड़बड़ी की स्थितियां एक जैसी रही हैं

इन सभी मामलों में अगर देखें तो गड़बड़ी की स्थितियां एक जैसी ही हैं। इन सभी की फाइनेंशियल स्थिति खराब हुई है। इनके बुरे फंसे कर्ज (NPA) बढ़े हैं। यानी जो कर्ज बैंक ने दिया, उसकी वसूली नहीं हो पाई। तीसरा प्वाइंट कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने समय-समय पर इनमें गवर्नेंस के मुद्दों को भी उठाया, पर बात बनी नहीं। इन तीनों बैंकों में एक और समानता थी कि तीनों पर मोरेटोरियम लगाया गया और निकासी पर सीमा तय कर दी गई।

यस बैंक के मामले में RBI ने बैंकों के एक कंसोर्टियम के जरिए हालात को काबू में किया। इसमें भारतीय स्टेट बैंक (SBI) के अलावा अन्य बैंकों ने भी पैसे डाले। SBI के ही मुख्य परिचालन अधिकारी (COO) प्रशांत कुमार को इसका प्रबंध निदेशक (MD) बनाया गया।

यस बैंक की तरह भाग्यशाली नहीं हैं PMC बैंक के ग्राहक

PMC बैंक के ग्राहक यस या लक्ष्मी विलास बैंक की तरह भाग्यशाली नहीं हैं। अभी भी RBI ने इस पर पूरा नियंत्रण नहीं लिया। क्योंकि यह सहकारी बैंक है और इसमें ढेर सारे ज्यूरिस्डिक्शन हैं। हालांकि हाल में कानून में बदलाव कर सहकारी बैंकों के सभी अधिकार RBI को दिए गए हैं।

पिछले साल से लक्ष्मी विलास बैंक मर्जर करने की योजना बना रहा था

लक्ष्मी विलास बैंक ने पिछले साल ही इंडिया बुल्स हाउसिंग के साथ मर्जर की प्लान की थी, जिसे RBI ने मंजूरी नहीं दी। इसके बाद उसने क्लिक्स कैपिटल के साथ मर्जर की बात शुरू की। पर इसे भी मंजूरी नहीं दी। अब सिंगापुर के DBS के साथ इसे मिलाया जाएगा।

डीबीएस की रेगुलेटरी पूंजी 7,109 करोड़

DBS की कुल रेगुलेटरी पूंजी 7,109 करोड़ रुपए है। जबकि जरूरत 7,023 करोड़ रुपए की ही है। इसकी कॉमन इक्विटी टियर (CET-1) कैपिटल 12.84% है। जबकि RBI के मुताबिक, जरूरत 5.5% की होती है। DBS को भारत में 4 अक्टूबर 2018 को बैंकिंग लाइसेंस दिया गया था।

ये कारण हैं जिनसे बैंक की स्थितियां प्रभावित हुई हैं

असेट क्वालिटी- असेट क्वालिटी का मतलब बुरे फंसे कर्जों से है। जब बैंक कर्ज देते हैं और उसकी रिकवरी नहीं होती है तो उनके कारोबार पर असर होता है। उन्हें इसका दो तरह से असर होता है। एक तो वह ग्राहक से डिपॉजिट लेकर कर्ज देते हैं। इसमें ग्राहक को उनको ब्याज देना है। दूसरा कर्ज वापस नहीं लौटता है तो उसका ब्याज भी जाता है और मूलधन भी डूब जाता है। इस तरह से बैंक को इसमें कई तरह से घाटा होता है।

बैंक का कारोबार ग्राहकों से डिपॉजिट लेकर ग्राहकों को कर्ज देने से चलता है। डिपॉजिट और कर्ज के बीच जो ब्याज का अंतर है, वही बैंक की कमाई होती है।

कैपिटल एडिक्वेसी रेशियो- इसके तहत बैंक को एक निश्चित रकम अलग से निकाल कर रखनी होती है। इस रकम का उपयोग बैंक किसी भी मकसद के लिए नहीं कर सकता है। यह आरबीआई के तय आधार पर किया जाता है। इसके कारण बैंक के पास कम पूंजी होती है जिसका वह उपयोग करता है। जब भी बैंक का CAR कम होता है तो बैंक को या तो पैसा जुटाना होता है या फिर वह डिपॉजिटर्स के पैसा का उपयोग उधारी के लिए करने लगता है।

यह पैसा हालांकि बैंक के लिए जोखिम वाला और उसके खुद के पैसे की तुलना में कीमती होता है। उदाहरण के लिए एक जमाकर्ता अपना पैसा कभी भी निकाल सकता है। इससे सीएआर में गिरावट आ सकती है। पिछले कुछ सालों में बैंकों के सीएआर में तेजी से गिरावट आई है।

बैलेंसशीट और मैनेजमेंट- पिछले कुछ सालों से कई बैंकों ने प्रोविजन के लिए पैसों को रखने में देरी की है। ऐसा इसलिए क्योंकि सरकारी बैंकों के सीईओ कम समय तक ही बैंक में रहते हैं। इसलिए वे अपने समय में ज्यादा लाभ दिखाना चाहते हैं। प्रोविजन में देरी करने का मतलब बैंक की फाइनेंशियल स्थिति पर दबाव होता है। इसीलिए जब किसी बैंक में नया सीईओ आता है तो उसके पहली तिमाही का रिजल्ट काफी खराब होता है क्योंकि वह ज्यादा प्रोविजन कर देता है।

21 सरकारी बैंकों में से 11 बैंक RBI के प्रोविजन में

आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि कुल 21 सरकारी बैंकों में से 11 बैंकों को हाल में RBI ने अपने सुपरविजन में रखा था। यानी इन बैंकों की स्थितियां खराब थीं। इसमें देना बैंक, यूको बैंक, युनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक, IDBI बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक जैसे बैंक प्रांप्ट करेक्टिव एक्शन (PCA) के दायरे में थे। हालांकि इसमें से कुछ बैंकों को दूसरे बैंकों में मिला दिया गया है।

पीसीए लागू होने से कई तरह का असर बैंक पर होता है

PCA लागू होने का मतलब कि बैंक न तो नई शाखा खोल सकता है न उधारी दे सकता है और न ही कोई और नया फैसला ले सकता है। किसी बैंक को PCA में तब रखा जाता है जब उसका NPA बढ़ जाए, CAR घट जाए, असेट्स पर रिटर्न कम हो और लिवरेज रेशियो कम हो।

बैंक क्यों आर्थिक दिक्कतों में आते हैं

बैंक तब आर्थिक दिक्कतों में आते हैं जब लोन की रिकवरी न हो पाए। कुछ मामलों में तो जो कर्ज लेता है वह जान बूझकर नहीं देता है। पर कुछ मामलों में बैंक नियम को ताक पर रखकर कर्ज देते हैं। उदाहरण के तौर पर PMC और यस बैंक ने DHFL को नियमों के परे जाकर लोन दिया। इसी कारण से यह मामला फंस गया। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि किसी एक को ज्यादा कर्ज देना बैंक के लिए खतरा बन जाता है। यही कारण था कि यस बैंक और PMC बैंक के लिए DHFL का भारी भरकम लोन खतरा बन गया।

लक्ष्मी विलास बैंक ने भी गलत किया

लक्ष्मी विलास बैंक ने भी 720 करोड़ रुपए रैनबैक्शी के पूर्व प्रमोटर्स मलविंदर और शिविंदर सिंह की कंपनियों में निवेश कर दिया। हालांकि इसके एवज में बैंक के पास इतनी ही दोनों भाइयों की एफडी थी, पर यह मामला कोर्ट में है।

रिकवरी हुई, पर राइट्स ऑफ भी हुआ

बैंकों की रिकवरी की बात करें इन्होंने पिछले एक साल में स्टील सेक्टर से 22,258 करोड़ की रिकवरी की है। जबकि इसी अवधि में 23,151 करोड़ का राइट्स ऑफ किया गया है। राइट्स ऑफ मतलब वो पैसा जो कर्ज दिया गया है और आगे आने की उम्मीद है। पर बैंकों ने जितना राइट्स ऑफ किया है, उसमें से केवल 5-6% ही रिकवरी हो पाती है। यानी यह भी NPA का एक दूसरा हिस्सा है। 2019 के दौरान सरकार ने सरकारी बैंकों में 11,500 करोड़ रुपए की पूंजी डाली है ताकि वे RBI की जरूरत के मुताबिक काम कर सकें।

RBI हर हफ्ते में एकाध सहकारी बैंक पर पेनाल्टी लगा ही देता है। जिस दिन लक्ष्मी विलास बैंक का मामला सामने आया,उस दिन 3 सहकारी बैंकों पर पेनाल्टी लगी।

सहकारी बैंकों पर हर हफ्ते पेनाल्टी लगती है

वैसे रिजर्व बैंक आए दिन सहकारी बैंकों में नियमों के मामले में पेनाल्टी लगाते रहता है। 17 नवंबर को लक्ष्मी विलास बैंक के साथ ही उसने तीन सहकारी बैंकों पर पेनाल्टी लगाई है।

बैंकों की भी गलती होती है

बैंकिंग के जानकार कहते हैं कि कुछ मामलों में बैंक जान बूझकर गलती करते हैं पर कुछ मामलों में तो कर्जदार ही गलत करता है। जैसे विजय माल्या या किसी और केस को लें तो यह तो अलग मामला है। वैसे कभी-कभी बैंकों की तरफ से किसी बिजनेस को लेकर लगाया गया अनुमान भी गलत हो जाता है। जैसे पिछले 4-5 सालों से स्टील, इंफ्रा या एविएशन सेक्टर की हालत अच्छी नहीं रही है। ऐसे में इसमें जो भी कर्ज दिए गए हैं, वे फंस गए हैं।

प्रमोटर्स ही एमडी हो जाए तो और दिक्कत है

जानकारों के मुताबिक कुछ मामलों में प्रमोटर्स ही अगर एमडी है तो और बुरा हो जाता है। क्योंकि फिर ऐसे बैंकों में जो भी गड़बड़ी होती है उसे छिपा दी जाती है। इस तरह का मामला यस बैंक, पीएमसी बैंक, लक्ष्मी विलास बैंक में आया है। यह तीनों प्रमोटर्स की ही गलती के कारण फंसे हैं। पर पीएनबी और आईडीबीआई में चूंकि प्रमोटर्स एमडी नहीं थे, इसलिए इन बैंकों में निकासी पर कोई सीमा नहीं लगाई गई और मामले को पकड़ लिया गया।

गाढ़ी कमाई बैंक में सुरक्षा के लिए रखी जाती है

लोग अपनी गाढ़ी कमाई बैंक में इसलिए रखते हैं कि वह सुरक्षित रहे। बैंक में रखे पैसों पर सबसे कम ब्याज मिलता है, पर सुरक्षा सबसे ज्यादा होती है। इसलिए ग्राहक बैंक में पैसे रखते हैं। लेकिन जिस तरह से हाल के सालों में बैंक डिफॉल्ट हुए हैं, उससे अब बैंकों में डिपॉजिट पर इसका असर पड़ सकता है।

सुरक्षा के भरोसे 140 लाख करोड़ की डिपॉजिट बैंकों में

अगर बैंकों की डिपॉजिट पर असर पड़ता है तो इसका सीधा असर यह भी होगा कि बैंक जो उधारी देते हैं उस पर ज्यादा ब्याज ले सकते हैं। साथ ही वे डिपॉजिट को आकर्षित करने के लिए ज्यादा ब्याज दे सकते हैं। सुरक्षा का ही आलम है कि देश की बैंकिंग इंडस्ट्री में 140 लाख करोड़ रुपए की डिपॉजिट है।



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